गणगौर की पूजा का सामान
Gangaur Poojan Samagri
रोली, मोली, अक्षत, मेहंदी, काजल, हल्दी, कोड़ी, चांदी की अंगूठी, जल कलश, दूब, फूल, कंघी, सुपारी, सिक्का, कनेर के पत्ते ( पाटा ) काँच, गुने ( फल ), घेवर, हलवा, पुरी, दो मिटटी के कुंडे, लकड़ी की चौकी, सवा मुट्ठी गेहूँ, ईसर और गणगौर के कपड़े आदि।
गणगौर की कहानी पूजा के समय – Gangaur Ki Kahani
गणगौर की कहानी , गणेश जी की कहानी , लपसी तपसी की व अन्य कहानियाँ। यहाँ गणगौर की कहानियां दी गई है जो कि इस प्रकार है।
गणगौर की कहानी ( 1 )
राजा ने बोए जौ , चने और माली ने बोई दूब। राजा के जौ , चने बढ़ते जा रहे थे और माली की दूब घटती जा रही थी। माली को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है। इसलिए उसने सोचा छुपकर निगाह रखनी चाहिए।
जब वह छुपकर देख रहा था तो उसने देखा कि कुछ छोटी-बड़ी लड़कियां उसकी दूब तोड़ कर ले जा रही हैं। उसे बहुत गुस्सा आया उसने लड़कियों को डाँटा और उनकी चुन्नी छीन ली।
लड़कियाँ माली से विनती करने लगी कि हमारी चुन्नी दे दो और हमें दूब ले लेने दो हम यह दूब गणगौर की पूजा के लिए ले जा रहे हैं। इसके बदले गणगौर का पूजा पाटा हम तुम्हें दे देंगे।
माली ने उन्हें दूब लेने दी। गणगौर की पूजा करने के बाद लड़कियों ने पूजा पाटा माली को दे दिया और माली ने अपनी मालन को दे दिया। मालन ने पाटा ओबरी में रख दिया। ( गणगौर की कहानी ……)
शाम को माली का बेटा आया और बोला – “माँ भूख लगी हैं ” माँ ने कहा -” बेटा , ओबरी ( छोटा कमरा ) में लड़कियों का पूजा पाटा रखा है , उसमें से कुछ खा ले।
माली के बेटे ने कमरा खोलना चाहा लेकिन उससे कमरा नहीं खुला। बहुत कोशिश करने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो उसने गुस्से में दरवाजे पर जोर से लात मारी पर दरवाजा फिर भी नहीं खुला तो माँ बोली बेटा ! तेरे से कमरा नहीं खुलता तो पराई जाई को पता नहीं कैसे ढाबेगा। ( Gangaur ki kahani….)
मालन ने टीकी में से रोली निकाली ,आँखों की कोर से काजल निकाला और नखो में से मेंहदी निकाली। हथेली में लेकर सबको घोला और ओबरी ( छोटा कमरा ) के छींटा दिया तो ओबरी खुल गयी।
अंदर देखा तो ईशर गणगौर बैठे थे। ईसर जी ने बहुत सुंदर वस्त्र पहने हुए थे और गौरा माँग सँवार रही थी व ओबरी में अन्न के भण्डार भरे पड़े थे। माली के बेटे , मालन को तथा माली को उनके सुन्दर दर्शन हुए।
हे गणगौर माता ! जिस प्रकार माली के परिवार को दर्शन दिए उसी प्रकार सबको दर्शन देना और ईसर जी जैसा भाग और गौर जैसा सुहाग सबको देना। कहानी कहने वाले हुंकार भरने वाले सबको देना और सबको अमर सुहाग का आशीवार्द देना।
जय शिव शंकर ! जय माँ पार्वती !
गणगौर की कहानी ( 2 )
एक बार शंकर भगवान पार्वती जी और नारद जी के साथ पृथ्वी पर घूमने आये और एक गांव में पहुँचे। उस दिन चैत्र शुक्ल की तीज थी।
जैसे ही गाँव वालो को भगवान के आने की सूचना मिली तो धनवान स्त्रियां श्रृंगार में तथा आवभगत के लिए तरह तरह के भोजन बनाने में व्यस्त हो गयी।
कुछ गरीब परिवार की महिलाएं जैसी थी वैसी ही थाली में हल्दी , चावल और जल आदि लेकर आ गयी और शिव पार्वती की भक्ति भाव से पूजा करने लगी। माता पार्वती उनकी पूजा से प्रसन्न हुयी और उन सबके ऊपर सुहाग रूपी हरिद्रा ( हल्दी ) छिड़क दी।
इस प्रकार माँ पार्वती का आशीवार्द व मंगल कामनाए पाकर अपने अपने घर चली गयी। ( गणगौर की कहानी ……)
कुछ देर बाद अमीर औरते भी सोलह श्रृंगार कर , छप्पन भोग सोने के थाल में सजाकर आ गयी। तब भगवान शंकर ने पार्वती जी को कहा कि सारा आशीवार्द तो तुमने पहले ही उन स्त्रियों को दे दिया अब इनको क्या दोगी ? पार्वती जी ने कहा आप उनकी बात छोड़ दें।
उन्हें ऊपरी पदार्थो से निर्मित रस दिया है इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा परन्तु इन लोगो को मैं अपनी अंगुली चीरकर रक्त सुहाग रस दूंगी जो मेरे समान ही सौभाग्यशाली बन जायेगी। जब कुलीन स्त्रियां शिव पार्वती की पूजा कर चुकी तब माँ पार्वती ने अपनी अंगुली चीर कर उन पर रक्त छिड़क कर अखण्ड सौभाग्य का वर दिया।
इसके बाद पार्वती जी शिव जी को कहा मै नदी मै नहाकर आती हूँ। माँ पार्वती ने नदी के किनारे जाकर बालू से शिव लिंग बनाया और आराधना करने लगी। ( Gangaur ki katha…)
शिव जी ने प्रसन्न होकर वरदान दिया कि आज के दिन जो भी स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेंगी उनके पति चिरंजीव रहेंगे और अंत में उन्हें मोक्ष मिलेगा।
इसके बाद पार्वती जी वहाँ गयी जहाँ शिव जी व नारद को छोड़कर गयी थी।
शिव जी ने देर से आने कारण पूछा तो पार्वती जी ने बहाना बनाया और कहा कि नदी के किनारे मेरे भाई भाभी मिल गए थे। उन्होंने दूध भात खाने का आग्रह किया , इसीलिए देरी हो गई।
शिव जी बोले हम भी दूध भात खाएंगे और जंगल की तरफ चल दिए पार्वती जी ने सोचा पोल खुल जाएगी वह प्रार्थना करती हुई पीछे पीछे चल दी। ( गणगौर की कहानी ……)
जंगल में पहुँचने पर देखा सुंदर माया का महल बना हुआ था उसमें पार्वती जी के भाई और भाभी विद्यमान थे। भाई भाभी ने उन सबका स्वागत सत्कार किया और आवभगत की और वहां रुकने का आग्रह किया। तीनो ने आतिथ्य स्वीकार किया। तीन दिन वहाँ रुके फिर वहां से रवाना हो गए। तीनों चलते चलते काफी दूर तक आ गए।
शाम होने पर शिव जी पार्वती जी से बोले कि मैं अपनी माला तो तुम्हारे मायके ही भूल आया हूँ। पार्वती जी ने कहा कि मैं लेकर आती है और माला लेने जाने लगी।
शिव जी बोले इस वक्त तुम्हारा जाना ठीक नहीं है। उन्होंने नारद जी को माला लेने भेज दिया। नारद जी वहाँ पहुंचे तो देखा कि वहाँ कुछ नहीं था। महल का तो नामो निशान भी नहीं था। अँधेरे में जंगली जानवर घूम रहे थे अंधकार पूर्ण वातावरण डरावना लग रहा था। यह देख कर नारद जी आश्चर्य में पड़ गए। ( Gangaur ki kahani….)
तभी बिजली कड़की और माला उन्हें एक पेड़ पर टंगी दिखाई दी। माला लेकर नारद जी तुरन्त वहाँ से दौड़ते हुए शिव जी के पास पहुंचे और शिव जी को वहाँ का वर्णन सुनाया।
सुनकर शिवजी हँसने लगे और उन्होंने नारद जी को बताया कि पार्वती जी अपनी पार्थिव पूजा की बात गुप्त रखना चाहती थी , इसीलिए झूठा बहाना बनाया था और फिर असत्य को सत्य करने के लिए उन्होंने अपनी पतिधर्म की शक्ति से माया महल रचा था। सच्चाई बताने के लिए ही मैने तुम्हे वहाँ माला लेने भेजा था।
यह जानकर नारद जी माँ पार्वती की पतिव्रता शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने माँ पार्वती की बहुत प्रसंशा की और पूजा करने की बात छिपाने को भी सही ठहराया क्योंकि पूजा-पाठ गुप्त रूप से पर्दे में रहकर ही करने चाहिए।
उन्होंने खुश होकर कहा कि जो स्त्रियां इस दिन गुप्त रूप से पूजन कार्य करेगी उनकी सब मनोकामना पूरी होगी और उनका सुहाग अमर रहेगा।
चूँकि पार्वती जी ने व्रत छिपकर किया था अतः उसी परम्परा के अनुसार आज भी इस दिन पूजा के अवसर पर पुरुष उपस्थित नहीं रहते हैं। खरी की खोटी अधूरी की पूरी !!!
जय शिव शंकर ! जय माँ पार्वती !
गणेश जी की कहानी – Ganesh Ji Ki katha Kahani
कोई भी व्रत करने पर उस व्रत की कहानी के अलावा ,गणेश जी की कहानी भी कही और सुनी जाती है।
इससे व्रत का पूरा फल मिलता है। व्रत की कहानी के साथ ही गणेश जी की कहानी जरूर
सुननी चाहिए।
एक बार गणेश जी एक लड़के का वेष धरकर नगर में घूमने निकले।
उन्होंने अपने साथ में चुटकी भर चावल और चुल्लू भर दूध ले लिया।
नगर में घूमते हुए जो मिलता , उसे खीर बनाने का आग्रह कर रहे थे।
बोलते – ” माई खीर बना दे ” लोग सुनकर हँसते।
बहुत समय तक घुमते रहे , मगर कोई भी खीर बनाने को तैयार नहीं हुआ।
किसी ने ये भी समझाया की इतने से सामान से खीर नहीं बन सकती
पर गणेश जी को तो खीर बनवानी ही थी।
अंत में एक गरीब बूढ़ी अम्मा ने उन्हें कहा
बेटा चल मेरे साथ में तुझे खीर बनाकर खिलाऊंगी।
गणेश जी उसके साथ चले गए।
बूढ़ी अम्मा ने उनसे चावल और दूध लेकर एक बर्तन में उबलने चढ़ा दिए।
दूध में ऐसा उफान आया कि बर्तन छोटा पड़ने लगा।
बूढ़ी अम्मा को बहुत आश्चर्य हुआ कुछ समझ नहीं आ रहा था।
अम्मा ने घर का सबसे बड़ा बर्तन रखा।
वो भी पूरा भर गया। खीर बढ़ती जा रही थी।
उसकी खुशबू भी चारों तरफ फैल रही थी।
खीर की मीठी मीठी खुशबू के कारण
अम्मा की बहु के मुँह में पानी आ गया
उसकी खीर खाने की तीव्र इच्छा होने लगी।
उसने एक कटोरी में खीर निकली और दरवाजे के पीछे बैठ कर बोली –
” ले गणेश तू भी खा , मै भी खाऊं “
और खीर खा ली।
बूढ़ी अम्मा ने बाहर बैठे गणेश जी को आवाज लगाई।
बेटा तेरी खीर तैयार है। आकर खा ले।
गणेश जी बोले –
“अम्मा तेरी बहु ने भोग लगा दिया , मेरा पेट तो भर गया”
खीर तू गांव वालों को खिला दे।
बूढ़ी अम्मा ने गांव वालो को निमंत्रण देने गई। सब हंस रहे थे।
अम्मा के पास तो खुद के खाने के लिए तो कुछ है नहीं ।
पता नहीं , गांव को कैसे खिलाएगी।
पर फिर भी सब आये।
बूढ़ी अम्मा ने सबको पेट भर खीर खिलाई।
ऐसी स्वादिष्ट खीर उन्होंने आज तक नहीं खाई थी।
सभी ने तृप्त होकर खीर खाई लेकिन फिर भी खीर ख़त्म नहीं हुई।
भंडार भरा ही रहा।
हे गणेश जी महाराज , जैसे खीर का भगोना भरा रहा
वैसे ही हमारे घर का भंडार भी सदा भरे रखना।
बोलो गणेश जी महाराज की…… जय !!!
लपसी तपसी की कहानी – Lapsi Tapsi Ki Kahani
एक लपसी था , एक तपसी था। तपसी हमेशा भगवान की तपस्या में लीन रहता था। लपसी रोजाना सवा सेर की लापसी बनाकर भगवान का भोग लगा कर ही जीमता था।
एक दिन दोनों झगड़ा करने लगे।
तपसी बोला – ” मै रोज भगवान की तपस्या करता हूँ इसलिए मै बड़ा हूँ ”
लपसी बोला – ” मै रोज भगवान को सवा सेर लापसी का भोग लगाता हूँ इसलिए मै बड़ा हूँ ”
नारद जी वहाँ से गुजर रहे थे। दोनों को लड़ता देखकर रुके और उनसे पूछा कि तुम क्यों लड़ रहे हो ?
तपसी ने खुद के बड़ा होने का कारण बताया और लपसी ने अपना कारण बताया ।
नारद जी बोले तुम्हारा फैसला मै कर दूंगा ।
दूसरे दिन लपसी और तपसी नहा कर अपनी रोज की भक्ति करने आये तो नारद जी ने छुप करके सवा करोड़ की एक एक अंगूठी उन दोनों के आगे रख दी ।
तपसी की नजर जब अंगूठी पर पड़ी तो उसने चुपचाप अंगूठी उठा कर अपने नीचे दबा ली।
लपसी की नजर अंगूठी पर पड़ी लेकिन उसने ध्यान नही दिया भगवान को भोग लगाकर लापसी खाने लगा।
नारद जी सामने आये तो दोनों ने पूछा कि कौन बड़ा तो नारद जी ने तपसी से खड़ा होने को कहा।
वो खड़ा हुआ तो उसके नीचे दबी अंगूठी दिखाई पड़ी।
नारद जी ने तपसी से कहा तपस्या करने के बाद भी तुम्हारी चोरी करने की आदत नहीं गयी। इसलिए लपसी बड़ा है।
तुम्हे तुम्हारी तपस्या का कोई फल भी नहीं मिलेगा।
तपसी शर्मिंदा होकर माफ़ी मांगने लगा।
उसने नारद जी से पूछा मुझे मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा ?
नारद जी ने कहा –
यदि कोई गाय और कुत्ते की रोटी नहीं बनायेगा तो फल तुझे मिलेगा।
यदि कोई ब्राह्मण को जिमा कर दक्षिणा नही देगा तो फल तुझे मिलेगा।
यदि कोई साड़ी के साथ ब्लाउज नहीं देगा तो फल तुझे मिलेगा।
यदि कोई दिये से दिया जलाएगा तो फल तुझे मिलेगा।
यदि कोई सारी कहानी सुने लेकिन तुम्हारी कहानी नहीं सुने तो फल तुझे मिलेगा।
उसी दिन से हर व्रत कथा कहानी के साथ लपसी तपसी की कहानी भी सुनी और कही जाती है।
जय हो नारद जी की ….
जय श्री नारायण , नारायण ….